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तीसरा सर्ग
यह सुनते ही 'त्रिशला ' रानी के
मन में अभिनव अनुभूति हुई । यों लगा कि उनके सम्मुख ही, एकत्रित स्वर्ग-विभूति हुई ||
ये दृष्य नींद में दिखते, या मैं जगती हूँ, यह भूलीं थीं । जाने उन स्वप्नों की स्रष्टा किस कलाकार की तूलीं थीं ॥
या किसी शची ने 'त्रिशला' को वे दृश्य बनाकर भेजे थे । स्वप्नों ने चुपके से श्रा जो, रानी को स्वयं
सहेजे थे |
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यह सब उनने चुपचाप किया, जिससे निद्रा भी भङ्ग न हो । सब दृश्य देख लें महिषी, परबाधित कोई भी श्रम न हो ॥
कारण वे बनने वालीं थीं, उन तीर्थंकर की माता अब | जिनके चरणों में माथा नित हर करुणाभक्त मुकाता अव ॥
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