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परम ज्योति महावीर
शय्या पर पड़ी पँखुडियाँ थीं, जुड़ा से शिथिलित फूलों की। थी सुरभि व्याप्त शयनालय में, इत्रों से सिक्त दुकूलों की ॥
नीलम मणि दीपो की आभा, कोने-कोने तक फैली थी। अतएव दुग्ध सी शय्या भी उस समय भामती मैली थो ॥
इतने में ही घड़ियाली ने, टन टन टन तीन बजाया था। अथवा स्वप्नों को श्राने का, उपयुक्त समय बतलाया था ।
उसका संकेत समझ स्वप्नीको कर्तव्यों का बोध हुवा । षोड़श स्वर्गों से सङ्ग चले, आपस में नहीं विरोध हुवा ॥
दे चले सूचना भावी की, वे निज सांकेतिक भाषा में । त्रिशला से बोले-'फल लगनेवाले हैं तव अमिलाषा में ॥'