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परम ज्योति महावीर
विपिनों में जैसे शेषनागकी सारी प्रजा विचरती हो । सुरपुर से श्यामल भूषा में परियों की पंक्ति उतरती हो ।
होते हों जैसे सम्मेलन, पथ में जग भर के चींटों के। श्यामा की शरण पधारे हों, दल श्याम वर्ण के कीटों के ॥
गौएँ महिषों सी दिखती थों, कौत्रों से दिखते थे तोते । मृग ऐसे दिखते, ज्यों भालूकाले कम्बल पर हों सोते ॥
यों भू पर श्यामा के श्यामल तम का शासन सा छाया था। जिसने नर-पशु-कृमि कीटों को,
भी तो घनश्याम बनाया था । सब सुख-निद्रा में सोये थे, बस अन्धकार ही जगता था । जो निशि की रक्षा में तत्पर कटि बद्ध सुभट सा लगता था ।