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तीसरा सर्ग
रजनी का अन्तिम प्रहर लगा, रजनीकान्त हुये ।
निष्प्रभ से
तारापति की यह दशा निरख, तारागण भी प्रति क्लान्त हुये ॥
तम बढ़ा और प्रत्येक वस्तु, हो गयी पूर्णतः काली थी ।
या सृष्टि किसी
रँगरेजिन ने
काले रंग में रंग
डाली थी ॥
पर ।
लगता था, सूख रहीं श्यामल-साड़ी नदियों के कुलों सो रही भ्रमरियों की सेना, जगती भर के सब फूलों पर ॥
महित्रों की परिषद बैठी हो सारे औौ' तारकोल हो कोई सम्पूर्ण निकेतों
ही जैसे खेतों में ।
नभ को मसिभाजन समझ किसी
ने काली स्याही घोली हो । ली पहिन दशों दिग्वधुनों ने काली मखमल की चोली हो ॥
पोत गया,
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