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पहला
सर्ग
उन सम कोमलता कभी कहीं, देखी न गयी क्षत्राणी में । केवल कोमल अणु. . लगे हुयेथे तन में, मन में, वाणी में ॥
अधिकार पूर्ण
वे सारी ललित
अध्यक्षा
होती
वे महिला - लोक
उनमें नवीनता इतनी थी, जितनी रहती हैं ऊषा में । पावनता इतनी थी जितनी, रहती निष्काम सुश्रूषा में ॥
विज्ञाता थीं,
कलाओं की ।
थीं प्रायः,
सभाओं की ॥
था ज्ञात पाक विज्ञान उन्हें, नित नव मिष्टान्न बनातीं थीं । कौशल से प्रिय को विस्मित कर प्रति दिवस प्रशंसा पातीं थीं ॥
यौवन का उनको गर्व न था, सुन्दरता का अभिमान न था । माया का किंचित् बोध न था, छलना का भी परिज्ञान न था ।.
શ