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सर्वत्र चतु दिक ही उनकी, सत्कीति कौमुदी फैली थी । श्री राम राज्य सी दोष रहित, उनके शासन की शैली थी ॥
वे इन्द्र सदृश थे, थीं उनकी— रानी त्रिशला इन्द्राणी सीं । जिन धर्म सदृश वे सुखकर थे, वे सुखदा थीं जिनवाणी सीं ॥
अवयव में,
सुषमा उनके हर चञ्चल शिशु सी इठलाती थी । तुलना करने पर काम-वधू, से सुन्दर वे दिखलाती थीं ॥
परम ज्योति महाबीर
अन्तर भी वैसा मधुरिम था, जैसा बहिरङ्ग सलोना था । लगता था मानो प्राणवान्, हो उठा सुगन्धित सोना था ||
श्रृंगारों से,
सजाती थीं ।
जब वे षोडश
अपना सर्वाङ्ग
तो उन्हें मानवी कहने की, सामर्थ्य नहीं रह जाती थी ।