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पहला सर्ग
कृषि नहीं सूखने पाती थी, थी सुविधा सभी सिंचाई की !
प्रत्येक योजना
जनता को पूर्ण
बनती थी, भलाई को ॥
उनके शासन की रीति नीति,
शीतल थी तरु की छाया सी !
को,
श्रावाल बृद्ध नर नारी प्रिय थी अपनी ही काया सी ॥
गीतकार निज गीतों में,
हर उनकी गुण गरिमा गाता था । हर चित्रकार निज चित्रों में,
उनका शुभ रूप बनाता था ||
हर व्यक्ति उन्हें ही निज युग का, सौभाग्य-विधाता
कहता था ।
वह युग भी उनको ही निर्भय, अपना निर्माता कहता था ॥
सामन्त उन्हें,
जाने कितने शिर बारम्बार नवाते थे । जाने कितने श्रीमन्त उन्हें, उत्तम उपहार चढ़ाते थे |
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