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परम ज्योति महावीर
कैवल्य साधना तक में भी, जिनको न कभी सन्देह हुवा । चरणों पर पड़ी सफलता से, जिनको न कभी भी स्नेह हुवा ।।
जिनकी छाया में बाघिन की, छाती से चिपटे मृगछोने । सिहों के बच्चों को निर्भय,
पय पान कराया गौत्रों ने ।। जिनके दर्शन को चले सदा, अहि नकुल सङ्ग ही झाड़ी से | जिनके दर्शन को चले सदा, गज सिँह के सङ्ग पहाड़ी से ।।
जीवन का अन्तिम लक्ष्य मुक्तिपा जिनका पौरुष धन्य हुवा । जिनके सम पुरुष महीतल पर, उस दिन से अभी न अन्य हुवा ।।
अब तक भी जिनका मुक्ति दिवस, हर वर्ष मनाया जाता है । गृह गृह में दीपावली जला, जिनका यश गाया जाता है।