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परम ज्योति महावीर
ऐसे मुहूर्त में कर्म नाशकर 'महावीर' अब सिद्ध हुये । उनके निर्वाण-समय के क्षण, बन पावन पर्व प्रसिद्ध हुये ॥
उनका आत्मा जा सिद्ध शिलापर तत्क्षण ही आसीन हुवा । सब कर्म पाश कट जाने से,
वह था प्रपूर्ण स्वाधीन हुवा । अब उनके ज्ञान तथा दर्शन, सुख शक्ति सभी निस्सीम हुये। थे मिले अनन्त चतुष्टय ये, इससे गुण सभी असीम हुये ॥
निर्वाण मनाने अतः जुड़े, तत्काल वहाँ पर सब नर सुर थे । सब अपनी भक्ति प्रकट करने
के हेतु विशेष समातुर थे । 'मङ्गल' का मङ्गल अरुणोदय, विहँसा, खग लगे चहकने अब । खिल गये कमल औ' दिग् दिगन्त, सौरभ से लगे महकने अब ।।