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तेईसवाँ स
यों लगा कि जैसे गाते हों, प्रभु की गरिमा ही सर्व विहग । औ' भक्ति विभोर सरोवर हो, बिखराते होवें गन्ध
सुभग ||
कर रहे आज सत्र चर्चा थे, प्रभुवर की त्याग कहानी की । उनको सराहती थी वाणी, हर ज्ञानी हर अज्ञानी की ॥
'पावा' के सर पर
जिसको जैसे ही
आये सब,
ज्ञात हुवा |
यों लगा,
मनाने कल्याणक
ही उस दिन स्वर्ण प्रभात हुवा ||
सुर अग्निकुमार सुरेन्द्र सहित, निर्वाण मनाने श्राये थे । सुर वायु कुमार सुरेन्द्र सहित, निज धर्म निभाने श्राये थे |
से,
तब
अग्निकुमार - किरीटों ज्वाला कण लगे निकलने थे । जिससे कर्पूर अगर,
चन्दन,
लग गये उसी क्षण जलने थे |
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