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तेईसवाँ सर्ग
वह बिदा हुवा, आश्विन श्राया,
रुकी वर्षा ।
विकसा सित कांस
नदियों का नीर
वृक्षों का हर
हुवा निर्मल,
पल्लव हर्षा |
कार्तिक को शासन सूत्र सौंप चल पड़ा एक दिन वह भी तो ।
दिन एक एक कर निकल चला क्रमशः ही महिना यह भी तो ॥
शुभ कृष्णपक्ष की चतुर्दशी दिन सोमवार क्रमवार गया ।
आ गयी निशा, नक्षत्र स्वाति -
पर श्री निशिनाथ पधार गया ।।
चौथे युग के त्रय
दी आठ मास थे
मंङ्गल - प्रभात था हुवा न मङ्गल सूचक ग्रह सारे
श्री महावीर के
हो रहे विरल अब
मास
इकहत्तर वत्सर तीन पच्चिस दिन के जैनेश रहे ।।
पर
थे ।
वर्ष
शेष
कर्मों सम
तारे थे ।
सार्थ
रहे ।