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परम ज्योति महावीर अगणित प्रकार के जीव साथ करते थे केलि कलाप वहाँ । कारण, सब वैर-विरोध दूर, होता था अपने आप वहाँ ।
सो को अपने पलों पर, बैठाते स्वयं कलापी भी। औ' मीन पकड़ना छोड़ रहेथे बगुला जैसे पापी भी ॥
इस भाँति चरम इस चतुर्मास-- से नर-पशु सबको लाभ हुये । श्री' लोक ख्याति के चरम शिखरको प्राप्त 'वीर' अमिताभ हुये ॥
पर कर काल से नहीं किसीकी देखी गयी भलाई है। इसने न किसी की चलने दी पर अपनी सदा चलाई है।
श्राषाढ़ गया, 'रक्षा बन्धन'का पर्व लिये श्राया सावन । ज्यों ही वह गया कि भाद्र मास पहुँचा ले 'पयूषण' पावन ॥