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________________ बाईसवाँ सर्ग 'श्रावस्ती' होते हुये गये, 'काम्पिल्य' नगर को त्यागी वे । पश्चात् 'अहिच्छत्रा' होते, 'गजपुर' पहुँचे बड़भागी वे ॥ धर्मोपदेश सुन ली 'वीर'-संघ में फिर लौट यहाँ 'पोलासपुरी' वे 'सद्दालपुत्र' ने यहाँ भक्त व्रत । न ग्रहण किये थे द्वादश यह देख 'अग्निमित्रा' पत्नीभी भक्त बनी हो पद पर नत || 'पोलास पुरी से कर विहार ग्रीष्मात समय तक किया भ्रमण | 'वाणिज्य ग्राम' फिर गये और रुक गये यहीं पर महाश्रमण || चतुर्मास था । जनता के कहना था || बहुतों ने यहाँ शरण । से पहुँचे थे महाश्रमण || अपने इकीसवें पर्यन्त यहीं पर रहना श्रतएव यहाँ की भाग्योदय का क्या ५६३
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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