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परम ज्योति महावीर
बन गयीं 'आर्यिका' रोग समझ तज द्रुत हरेक सुख भोग दिया । श्री 'वीर' संघ में रह कर्मोंके क्षय का शुभ उद्योग किया ।
कुछ समय वहाँ रह फिर 'विदेह'की ओर गये वे महा श्रमण । वर्षा के पहिले 'वैशाली'
श्रा पहुँचे करते हुथे भ्रमण ॥ औ यह बीसवें चतुर्मास के पूरे चारों मास किये। धर्मोपदेश सुन जनता ने व्रत यथा शक्ति सोल्लास लिये ॥
'वैशाली' से 'उत्तर विदेह'की ओर गये निर्मोही वे। औ' 'मिथिला' होते हुये गये क्रमशः 'काकन्दी' को ही वे ॥
हो यहाँ प्रभावित 'धन्य' श्रादि दीक्षा ले बने दिगम्बर यति । तदनन्तर ही 'काकन्दी' से पश्चिम की ओर बढ़े जिनपति ।।