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बाईसवाँ सर्ग
इससे
उनीस
चतुर्मास
भी यहीं किया इस बार पुनः । 'कौशाम्बी' श्रोर विहार किया, करने को धर्म प्रचार पुनः ॥
इस पथ में 'श्रलभिया' नगरी - में रुक कुछ समय बिताया था 'ऋषभद्र पुत्र' श्रादिक अनेक पुरुषों में शान जगाया था ॥
फिर 'श्रालमिया' से 'कौशाम्बी' वे करुणा के अवतार गये । प्रभु निकट 'चण्ड प्रद्योत ' संग श्री 'उदयन' राजकुमार गये ||
'अङ्गारवती'
के मन पर अधिक
तत्काल 'वीर' के दीक्षा लेने का
श्रौ' 'मृगावती'
प्रभाव हुवा |
चरणों में,
हुवा ||
भासे श्रौ'
श्राभरण भार से परित्याज्य समस्त विभूति लगीं । उन अबलाओं के अन्तस् में यों प्रबल श्रात्म अनुभूति जगी ।।
चाव
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