________________
५५८
यह राजघोषणा सुन प्रमुदित हो गये सभी नर-नारी थे ।
इस नव
उदारता हेतु भूप
के सभी हुये आभारी थे |
उस
समय रानियों युवराज- ' के मन पर छाप विशेष पड़ी ।
अब कठिन लगा में रहना उनको
स्वीकृत -
होकर निश्चिन्त पुरुष करते मुनि धर्म पुनीत सतत उनके कुटुम्ब के व्यक्ति सभी, गाते 'पिंक' के गीत सतत ॥
उस राजभवन
एक घड़ी ||
परम ज्योति महावीर
इससे युवराज ने मुनि हो, परित्याग मोह का पाश दिया ।
श्रर्यिका रानीं, यों
बन गयीं - उनने भी श्रात्म विकास किया ||.
यो 'राजगृही' में हुई धर्मकी यह प्रभावना बहुत बड़ी । प्रत्यचदर्शिनी इस सबकी वह 'पंच पहाड़ी' अभी खड़ी ॥