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ब्राईसवाँ सर्ग
वर्षा व्यतीत हो जाने परभी वहाँ 'वीर' जगदीश रहे । धार्मिक चैतन्य मनुष्यों में नित भरते वे वागीश रहे ।
हित मित प्रिय भाषा में मुसकर उपदेश सभी को देते थे। सुन जिसे अनेक पुरुष श्राकर प्रभुवर से दीक्षा लेते थे।
यह देख दिया निज जनवा को "श्रेणिक' ने यह आदेश तभी । 'जो दीक्षा लेना चाहे, ले-- -सुविधा दूंगा सविशेष सभी॥
जो कोई मुनि-पद धारण कर करना चाहे उद्धार, करे । परिवार आदि की चिन्ता तज अनगार धर्म स्वीकार करे ।।
एवं न कुटुम्बी भी उसके निज को लें मान अनाथ अभी । लेंगे परिपालन का . उत्तर दायित्व स्वयं नरनाथ सभी ।