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गुणवान वहाँ थे जितने भी वे और अधिक गुणवान हुये । विद्वान वहाँ थे जितने भी, वे और अधिक विद्वान हुये ॥
यों नित प्रभावना करते ही, पूरा वह aware किया । फिर किया भ्रमण, सर्वत्र जनोंने धर्मामृत सोल्लास पिया ||
'कचंगला,
विहारी थे ।
करते विहार यो
पहुँचे वे श्रात्म यह समाचार पा बन्दनार्थ, ये अगणित नर नारी थे |
परम ज्योति महावीर
सुन पतित पावनी दिव्यध्वनि सबने निज कर्ण पवित्र किये । दी त्याग शत्रुता सबने हो श्र' बना शत्रु भी मित्र लिये ||
" स्कन्दक' ने भी तब समवशरणमें श्रा सोत्साह प्रवेश किया । 'हो चकित 'वीर' की शान्तिमयी छवि का दर्शन अनिमेष किया ||