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________________ ५११ बीसवाँ सर्ग अतएव 'वीर' ने पुनर्जन्मका प्रतिपादन निर्दोष किया । भूतातिरिक्त इस श्रात्मा को कर सिद्ध इन्हें सन्तोष दिया । भ्रम दूर हुवा, इससे इननेभी तो स्वीकृत मुनिधर्म किया । दसवें गणधर की पदवी पा पहिचान धर्म का मर्म लिया । औ' शिष्य वर्ग भी निज गुरु का अनुकरण तुरत कर धन्य हुवा । कारण कि सभी को अति अपूर्वअानन्द प्रव्रज्या-जन्य हुवा ॥ अब द्विज 'प्रभास' की भ्रान्ति व्यक्तकरते बोले मुनिपाल अहो । "क्या तुम्हें मोक्ष में शंका है ? सङ्कोच त्याग तत्काल कहो ॥" यह सुन 'प्रभास' ने कहा-"आपने है यथार्थ ही भान किया । मेरे कहने के पूर्व अहो, मेरी शंका को जान लिया ।
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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