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raat सर्ग
ध्रुव सत्य कथन है यह कोई, उन्मत्त पुरुष की गल्य नहीं । यह सब यथार्थ का चित्रण है, इसमें न कल्पना अल्प कहीं ॥
ज्योतिषी सुरों ने समवशरण, इतना अभिराम लगाया था । जिसको विलोक कर लगता, भूपर स्वर्ग उतर कर आया था ||
प्रवेश पा सकते थे,
सभी । सकते थे,
चण्डाल सभी ॥
उसमें
भूपाल सभी कङ्गाल
उसमें सहर्ष es ब्राह्मण
जिस भाँति वहाँ श्रा सकते थे पुण्यात्मा, धनपति, गुणी सभी । उस भाँति वहाँ आ सकते थे, पापी, निर्धन, निर्गुणी सभी ॥
नर के समान श्रा सकते थे, वृष, गज, तुरङ्ग, लंगूर वहाँ । निर्भय प्रवेश कर सकते थे, मैना, मधुघोष, मयूर वहाँ ॥
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