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परम ज्योति महावीर
पर प्रभु की दिव्यध्वनि द्वारा, गंजे थे अभी दिगन्त नहीं । श्रतएव 'अवधि' से देवराजने सोचा हेतु तुरन्त वहीं ।
अब चलो, पाठको ! देखें हम श्रागे क्या घटना घटती है। किस भाँति द्विजोत्तम 'इन्द्रभूति'की जीवन-दिशा पलटती है ?
जो निज विद्वत्ता के मद में रहते थे प्रायः चूर अभी। प्रभु समवशरण में आ उनका मद कैसे होता दूर सभी ।।
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