________________
परम ज्योति महावीर.
कैवल्य-लाभ कर 'महावीर' अब विश्वशान के कोष हुये । यह देख न केवल यहाँ, स्वर्गमें भी उनके जयघोष हुये ।।
अब चरम दशा को पहुँच चुकाथा उनका दर्शन ज्ञान प्रखर । अतएव हुये थे निज युग के वे सर्वोपरि विद्वान प्रखर !!
अब उन्हें ज्ञान में तीन लोक
औ' तीनों काल दिखाते थे। कर तल गत से उन्हें स्वर्गभूतल-पाताल दिखाते थे।
यह अनुपम लाभ हुवा था पर, उनको न अल्प भी गर्व हुवा । कैवल्य-प्राप्ति का दिवस अतः जगती को मङ्गल पर्व हुवा ।।
सबने सोल्लास मनाया था, कैवल्य प्राप्ति का वह मङ्गल । 'जय महावीर' 'जय महावीर'-- की ध्वनि से गूंजा था जङ्गल ।।