________________
४२६
परम ज्योति महावीर
इतना कह कर वह मौन हुवा, सबने प्रभु-ध्यान-प्रताप सुना । हर वाक्य देवियों ने भी तो, अति शान्ति सहित चुपचाप सुना ।।
फिर कहा-"आपने धूल-नीर बरसा कर उन्हें सताया है। कुछ कीड़ों और मकोड़ों को, उनके तन से चिपटाया है ।
पर यह सोचा भी नहीं कि तनसे रखते मोह यतीश नहीं। इससे ऐसे उद्योगों से, तजते स्वयोग योगीश नहीं ।।
इन पर तो रङ्ग चढ़ा सकतीहै मात्र वासना की तूली। अतएव अापने व्यर्थ वहाँजा कर बरसायी है धूली।।
इस कार्य हेतु तो हमसे बढ़, होते न आप सब दक्ष कभी। अब देखो, उन्हें परखतीं हैं हम जाकर वहीं समक्ष अभी ।।