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दन्तावलि बाहर को निकाल, ग-युग लोहित सा लाल किया ।
श्र' लगा भाल पर सींगों को, निज रूप बना विकराल लिया ||
चिल्लाया, 'पर डरे 'वीर'
यों रुद्र रूप धर और मचा
कर विविध उपद्रव क्लेश दिया । माया से
घोर भयानक वह,
सारा निकटस्थ प्रदेश किया ||
गरजा,
चिंघाड़ा,
भगवान नहीं |
उत्पात सामने होते थे,
पर तजते थे वे ध्यान नहीं ||
परम ज्योति महावीर
जब उसने देखा,
मेरे ये
मारे प्रयत्न हो गये विफल । तो अन्य उपायों से उनको, तपच्युत करने को हुवा विकल ॥
माया से उसने भीलों की सेना ली बना नवीन वहीं | जो उन्हें डराने लगी किन्तु, चे रहे ध्यान में लीन वहीं ॥