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सोलहवां सर्ग
इतनी तन्मयता से उनने इस बार वहाँ पर ध्यान किया । सुरपति ने देख जिसे उनकेतप की महिमा का गान किया ।
वे बोले देवों के सम्मुख"उन तुल्य न कोई ध्यानी है। शत जिह्वा से भी अकथनीय,
उनकी यह ध्यान-कहानी है ।। सुर तक भी डिगा न सकते हैं उनने ऐसा अभ्यास किया । यह सत्य बात भी सुन न एकसुर ने इस पर विश्वास किया ।।
उसको तत्काल हुई इच्छा, उनको प्रत्यक्ष निरखने की।
औ' बना योजना ली उसने प्रभुवर का ध्यान परखने की ।।
वह पूछ इन्द्र से चला तथा थे वे 'त्रिशला' के लाल जहाँ । निज बल से उन्हें डिगाने को, वह पहुँच गया सत्काल वहाँ ।