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परम ज्योति महावीर
उसका महत्त्व था अभी क्यों कि, प्रभुवर उपदेश न देते थे । औ' अभी किसी को शिष्य बना, वे अपना वेश न देते थे ।।
कारण कि नहीं था पूर्ण हुवा, उनका प्रशस्त उद्देश अभी । औ' जीत घातिया कर्मों को, थे बने न 'वीर' जिनेश अभी ।।
अतएव मौन रह विचरण वे, करते थे अभी प्रदेशों में । कैवल्य-प्राप्ति के लिये देहको तपा रहे थे क्लेशों में ॥
वे बनना चाह रहे थे द्रुत, सम्पूर्णतया निर्दोष स्वयं । श्रौ' बनना चाह रहे थे द्रुत, वे विश्व ज्ञान के कोष स्वयं ।।
अतएव निरन्तर चलता था, उनका यह अनुसन्धान अभी । तिल मात्र न आने देते थे, इसमें कोई व्यवधान अभी ॥