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सोलहवाँ सर्ग
इस लघुतम घटना ने भी तो, उस पर प्रभाव अति डाला था। सब का जन्मान्तर सम्भव यह, सिखलाया ज्ञान निराला था।
फिर भी प्रभु के श्रादर्श सभी, वह जीवन में न उतार सका । छह वर्ष शिष्य सा रह कर भी, कर नहीं अात्म उद्धार सका ।।
श्री' यश-लिप्सा से प्रेरित हो, करने स्वतन्त्र प्रस्थान लगा । तेजोलेश्या की प्राप्त पुनः, करने निमित्त का ज्ञान लगा ।।
छह दिशाचरों से पढ़ निमित्त, वह इस विद्या में दक्ष हुवा । इस कारण कुछ ही दिवसों में, वृद्धिंगत उसका पक्ष हुवा ॥
अब अपने को प्राचार्य मान, वह प्रभु से रहता दूर सदा । 'श्राजीवक' मत का नेता बन, रहता था मद में चूर सदा ।।