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परम ज्योति महावीर
औ' नियत समय पर उम नगरीमें पहुँचे करते हुये भ्रमण । रुक चार मास के लिये वहाँ, तप लीन हुये वे महाश्रमण ।।
चातुर्मामिक तप से सार्थक, यह सप्तम चातुर्मास किया । जल नहीं एक भी बँद पिया, औ' नहीं एक भी ग्रास लिया ||
जब चतुर्मास हो गया, तभीश्राहार लिया उन त्यागी ने । 'कुण्डाक' अओर प्रस्थान किया, फिर उन सच्चे वैरागी ने ॥
तदनन्तर वे 'मद्दना' गये, 'बहुसाल' पहुँच फिर ध्यान किया ।। फिर 'लोहार्गला' नगर जानेको उनने था प्रस्थान किया ।
'जित शत्रु' भूप ने वहाँ किया । सम्मान स्वयं उन ध्यानी का । फिर 'पुरिमताल' की ओर गमन, हो गया शीघ्र उन शानी का ।।