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पन्द्रहवाँ सर्ग
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फिर 'कूपिय' पहुँचे, तदनन्तर, 'वैशाली' को प्रस्थान किया । कुछ टहर वहाँ ग्रामाक गये, फिर 'शालिशीर्ष जा ध्यान किया ।।
चल पुनः 'भद्दिया' में करने - को वर्षावास पधारे थे । यह छठवाँ चातुर्मास यहाँ, करते सिद्धार्थ-दुलारे थे ।
चातुर्मासिक तप किया, यहाँभी ग्रहण कि या अाहार नहीं । रह निराहार ही बिता दिये, वर्षा के महिने चार वहीं ।।
कर चातुर्मास समाप्त पुनः, चल 'मगध' ओर वे नाथ गये। 'गोशालक' भी अनुगामी से, उन स्वामी प्रभु के साथ गये ।
औ' वहीं शीत ऋतु प्रातप ऋतुका समय बिता इस बार दिया। फिर 'श्रालंभिया' पहुँचने को, उनने अविलम्ब बिहार किया ।