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उपवास अधिक वे करते थे,
पर तन -सामर्थ्य न
घटता था ।
श्री' चार घातिया कर्मों का, बन्धन क्रम क्रम से कटता था ।
जय निराहार ही तप
पूरे हो महिने चार तत्र पारणार्थ मध्याह्न में वे सिद्धार्थ कुमार गये ||
समय
आहार ग्रहण कर चले पुनः, श्र 'कलि' ग्राम को जाना था । कारण, उनने निज जीवन में, आगे बढ़ना ही
ठाना था ।।
परम ज्योति महावीर
करते,
गये ।
फिर 'जम्बूसंड' पहुँचने को उनने निज चरण बढ़ाये थे । पश्चात् वहाँ से चल कर वे 'तंबाय' ग्राम में आये थे ॥
औ' अधिक दिनों तक उन्हें कहीं
रुकना लगता था ठीक नहीं ।
उचित,
श्रतएव समझते जहाँ जाते थे वे निर्भीक
वहीं ॥