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परम ज्योति महावीर
वर्षागम हुवा कि चार मासतक को सस्थगित विहार किया। निज पञ्चम वर्षावास यहीं, 'भद्दिलपुर' में इस बार किया ।।
पर कभी पारणा करने को, वे नहीं नगर की ओर गये । रह चार मास तक निराहार, तप किये निरन्तर घोर नये ॥
अति जटिल तपस्या थी फिर भीतो शिथिल न उनके अङ्ग हुये । हर दर्शक को विस्मय कारक, उनके आसन के ढङ्ग हुये ।।
हर ग्राम ग्राम में फैल गयी, उनके तप की यह करुण-कथा । जनता ने ऐसा तप करता,
देखा कोई भी तरुण न था ।। सब उन्हें निरखने लगते थे पथ से जब कभी निकलते वे । लगता, जैसे तप चलता हो जिस समय मार्ग पर चलते वे ॥