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वे लगे सोचने, कर्मों नेये क्या क्या नाच नचाये हैं ?
मैंने
जग-नाटकशाला में
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ये क्या क्या स्वाँग रचाये हैं ?
पापोदय से 'पुरुखा' भीलकिया ।
परम ज्योति महावीर
हो मैंने पापाचार श्र' पत्नी सहित अहिंसा व्रत -- मैंने मुनि से स्वीकार किया ॥
व्रत फल स्वरूप मैं 'भरत' नाम-के चक्री की सन्तान हुवा | मम पिता 'भरत' को दीक्षा के लेते ही केवल
ज्ञान हुवा ||
मम चाचा
'बाहुबली' ने भी शिवनगरी को प्रस्थान किया । मम बाबा 'ऋषभ' जिनेश्वर ने -- भी शोभित मोक्षस्थान किया ||
पर मुनि के पद से डिगने से मेरी अब तक यह रही दशा । अब तक इन आठों कर्मों ढ़तम बन्धन में श्रहो फँसा