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परम ज्योति महावीर
तीर्थकरत्व का बन्ध किया, फिर मैं सोलहवे स्वर्ग गया । देवेन्द्र हुवा, फिर प्राप्त यहाँ, यह तीर्थकर पद किया नया ।।
यों देखा, पुण्य-सुधा भी पी, औ' पापों का भी गरल पिया । देखा विमान भी सुरपुर का, अनुभव नरकों का पटल किया ।।
उनकी विरागता और बढ़ी, इन पूर्व भवों की गाथा से । वैराग्य-दिवाकर की किरणेंसी निकलीं उनके माथा से ।।
वे लगे सोचने निज मन में, मैं देख चुका भूगोल सभी ।
औ' पाप-पुण्य के द्वारा मैं,
ले चुका दुःख सुख मोल सभी ॥ दुर्गन्ध नरक की भी सँघी, सूघी मन्दार-सुगन्ध तथा । बाँधी 'निगोद' की आयु, कियातीर्थकरत्व का बन्ध तथा ॥