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बारहवाँ स
जिन-मुनि-मुद्रा अपनाने में-
दिखा |
ही उन्हें स्वपर का त्राण श्र' पञ्च महाव्रत पालन मेंही उन्हें स्वपर कल्याण दिखा ॥
वे क्यों कि परिग्रह द्वारा हरसकते थे जग का त्रास नहीं । जलनिधि निज जल से हर सकताहै किसी पुरुष की प्यास नहीं ॥
सब भूषण दूषण से भासे, भूषा भूसा सी ज्ञात हुई। निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुनि बननाअत्र उन्हें सरलतम बात हुई ||
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अपने पावन कर्त्तव्यों
था
किया ।
आज उन्होंने ज्ञान अपने अभीष्ट को पाने सम्यक् पथ था पहिचान लिया ||
किया ।
करुणा की
उनके मानस से ऐसी निर्झरिणी जिसकी गति कुण्ठित कर सकते --
श्राज बही ।
थे विघ्नों के गिरिराज नहीं !!
का
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