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दसवाँ सर्ग
हे माँ! न अाज तक कभी श्रापने मेरी कोई हठ टाली। विश्वास अतः, गत अन्य हठोंसी यह हठ जायेगी पाली ॥
यों 'महावीर' ने 'त्रिशला' से, सूचित निज सकल विचार किये । जो कई दिनों से सोच रहेथे प्रकट वही उद्गार किये ॥
माता की ममता विफल हुई, सुन सुत के नये विचारों को। माना उस समय वृथा उनने, अपने सारे अधिकारों को ॥
छिन गया हृदय से क्षण भर में, सासू बनने का चाव सभी । लुट गये पुत्र हित नवल वधूले पाने के भी भाव सभी॥
औ' व्यर्थ राजकन्याओं केवे सुन्दर सुन्दर चित्र लगे। निष्फल विवाह हित सञ्चित वे, श्राभरण, वसन औ' इत्र लगे ॥