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तन जैसा मन भी निर्मल है, करती है वार्तालाप मधुर । मुख से मोती सी झरती है शब्दावलि अपने आप मधुर ॥
मैंने उसके ही संग अभी, परिणय की बात चलायी है । औ' उसकी माता तथा पिता-की भी तो स्वीकृति श्रायी है ।।
'जितशत्रु' कलिंग महीपति हैं उनकी है राजदुलारी यह । 'औ' नाम 'यशोदा' द्वारा ही, विश्रुत है राजकुमारी यह ||
परम ज्योति महावीर
श्रतएव इसी के सँग परिणय, स्वीकृत ऐ मेरे लाल ! करो । वर रूप बनाकर चलो तथा स्वीकृत उसकी वरमाल करो ॥
सर्वोत्तम है,
सम्बन्ध यही स्वीकार इसे सोल्लास करो । सन्देह करो मत इसमें कुछ, मम बातों पर विश्वास करो ||