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नवाँ सर्ग
पटुतर्क शास्त्रियों ने उनके, तर्कों को स्वयं सराहा था। दार्शनिकों ने उनसे दर्शनशास्त्रों को पढ़ना चाहा था ।
लगता था, मानों सरस्वतीको ही उनसे थी प्रीति हुई। हैं मेरे प्राणाधार यही, थी ऐसी उसे प्रतीति हुई ।।
था हेतु कदाचित यही कि जो, स्वयमेव उन्हें गुण लाभ हुये । संगीत, काव्य औ' चित्रकलासब में पटु वे अमिताभ हुवे ।।
इतिहास गणित के ज्ञाता भी, वे 'त्रिशला' माँ के लाल हुये । उन 'स्वयं बुद्ध' की बुद्धि देख
आनन्दित अति भुपाल हुये ।। निर्दोष वाक्य वे कहते थे, लिपि भी अति सुन्दर लिखते थे ।
औ' वाद्य बजाने में भी तो वे अद्वितीय ही दिखते थे।