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परम ज्योति महावीर
उस दिन से ही 'अतिवीर' नामभी उनके लिये प्रयुक्त हुवा । जो उनके अति वीरत्व हेतु, अतिशय ही तो उपयुक्त हुवा ।।
यों प्रायः नित्य असाधारण, गुण प्रकटित होते रहते थे । जो उनके भावी जीवन की, पावन गरिमा को कहते थे ।
या अद्वितीय ही शान उन्हें, श्रागम का और पुराणों का। अविरोध विवेचन करते थे, हर नय का, सकल प्रमाणों का ।
अवलोक योग्यता उनकी यह, विद्वान् सभी , चकराते थे । बन जाते उनके चेला जो, उनके गुरु बनने पाते थे।
तत्वों की व्याख्या करने कीथी उनकी रीति निराली ही। इससे न मात्र वह 'कुण्डग्राम', पर गर्वित थी 'वैशाली' भी ।।