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नवौं सर्ग
२५५.
हस्ती ने अपनी शुण्ड उठा,
आक्रमण किया उन ‘सन्मति' पर । उस समय उन्हें श्रा गयी हँसी, उस पशु की पशुता दुर्मति पर ।।
वह शुण्ड पकड़कर ही उस पर, चढ़ने वे 'वीर' कुमार लगे। यह देख दूर से ही दर्शक,
करने उनकी जयकार लगे ॥ वे बैठ गये गज-मस्तक पर, जनता ने फेंकी मालाएँ । वातायन से उन पर पुष्प वृष्टि, कर चलीं नगर की बालाएँ ।
यों शत्रु बना जो हस्ती था, वह ही अब उनका मित्र बना । जो हिंस्र वृत्ति अपनाये था, वह करुणा सिक्त पवित्र बना ।।
यह घटना सुनकर 'त्रिशला' नेमी अनुभव अति प्रामोद किया। ज्यों अन्तःपुर में आये वे, त्यों उन्हें उठा निज गोद लिया ।