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था ज्ञान न उसको 'महावीर'की महावीरता का, बल का ।
सोचा, 'मेरा क्या कर सकता, यह राजकुमार ग्रभो कल का ?"
इनमें देवों से अधिक शक्ति, इनका न उसे था बोध अभी ।
वह समझा था साधारण नर, इससे विशेष था क्रोध अभी ॥
यह सोच वेग
अतएव हुवा अब
पहले
से -
बबूला
था।
भी बढ़कर श्राग 'मैं अभी पछाड़े देता हूँ',
यह
सोच हृदय में फूला था ॥
पर 'महावीर' उस क्षण पुरुषार्थ वे अनुकरणीय
से झपटा वह,
निर्भीक रहे ।
पराक्रम के
परम ज्योति महावीर
सोचा, 'यम के ही सम्मुख लेआया इसका दुर्भाग्य इसे | अब मृत्यु-गोद में सोने का, मिल जायेगा सौभाग्य इसे ॥
,
प्रतीक रहे ||