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नवाँ सर्ग
सुनते ही वे भय हरने को
मतवाले हस्ती
वश करने
नागरिकों का -
सन्नद्ध
हुये ।
को अपने,
को कटिवद्ध हुये ||
सत्र बोले- “गज मतवाला है, अतएव न जाएँ नाथ ! वहाँ । निश्चिन्त विराजे राजभवनमें हम सुभटों के साथ यहाँ ।
पर 'महावीर' अति निर्भय थे, उनमें भय का तो नाम न था । पर कष्ट देखते हुये उन्हें, भाता सुख से विश्राम न था ।।
गज
इससे न किसी की बात सुनी, निर्भय उस गज के पास गये । निज संग न अन्य लिये सैनिक, एकाकी ही सोल्लास गये ||
उन्हें
देखते ही सहसा,
अत्यन्त
उम्र हो कुपित हुवा ।
आ रहे उसी के पास स्वयं,
यह देख द्विरद कछ चकित हुवा ||
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