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परम ज्योति महावीर
यों उनको इन्द्र"जनक मुनि"सुर'से नाम अभी थे चार मिले । संभव है पञ्चम नाम उन्हें, अब सत्वर इसी प्रकार मिले ।
वे महापुरुष थे जन्मजात, शैशव से करुणा धारी थे। थी अभी कुमारवस्था हो, पर अद्वितीय उपकारी थे।
मुन पड़ा एक दिन उन्हें-“एकमतवाला गज स्वाधीन हुवा । हो पूर्ण निरंकुश जनता को, पीड़ा देने में लीन हुवा ।।
उसके उत्पातों से नगरी--- के सारे व्यक्ति अधीर हुये । हे नहीं किसी में साहस जो,
उसका विकराल शरीर छुये ॥ चरणों से कुचल अनेक पुरुष, उसने अतिशय अन्धेर किया । कर जीवन से खिलवाड़, पथों-- पर लगा शवों का ढेर दिया ।।"