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________________ नवौं सर्ग २५१ इस घटना द्वारा हुवा सभीको उनके बल का निश्चय था । सब समझ गये उन 'महावीर' - का हृदय पूर्णतः निर्भय था । था समय अधिक हो चुका श्रतःसब नगरी को स्वच्छन्द चले । थी 'वीर' कृपा से विपद् टली, अतएव सभी निन्द चले । मित्रों ने कर दी प्रकट नृपति-- से वह सब घटना जाते ही। नृप ने भी सुत--पुरुषार्थ सुना, छाती से उन्हें लगाते ही ॥ यह बात नगर में फैल गयी, जनता उनका बल जान गयी। वह 'वीर' समझती थी अब तक, पर 'महावीर' अब मान गयी ॥ वे इसी नाम से ख्यात हुये, घटना का यह परिणाम हुवा । जनता को उनके सब नामोंसे बढ़ कर प्रिय यह नाम हुवा ।।
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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