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परम ज्योति महावीर
श्री' बोला--वीर शिरोमणि ! तव चरणों में शीश झुकाता हूँ। मैं यहाँ परीक्षक बन पाया, औ' बना प्रशंसक जाता हूँ।
सुन तव सराहना सुरपति से, सुर पुर से था तत्काल चला । तव शक्ति--परीक्षा लेने को, ही था मैं ऐसी चाल चला ।।
पर तव बल सिद्ध सुरेश्वर केकहने के ही अनुकूल हुवा ।
और शक्ति परीक्षा लेने का मेरा सारा मद धूल हुवा ॥
तुम 'वीर' नहीं हो 'महावीर' मैं यह ही नाम रखाता हूँ। जो भूल हुई वह क्षमा करें, अब निज निवास को जाता हूँ ।"
यो उसने 'सन्मति' की संस्तुति-- में प्रकट किये उग्दार स्वयं । हो अन्तर्धान पुनः सुरपुर-- को किया तुरन्त विहार स्वयं ।।