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नयाँ सर्ग
मम भार स्वतन पर होने से,
इसका मन अतिशय क्षुब्ध हुवा । लगता है ऐसा जैसे वह हो मम साहस पर लुब्ध हुवा ||
अतएव लौट अव श्राश्रो सब देगा न तुम्हें यह त्रास यहाँ । यह सुन कर सहचर लौट तुरत, श्री गये वीर के पास वहाँ ॥
वीर नहीं,
ये 'वीर' नाम के यह 'संगम' सुर को ज्ञात हुवा | उनका गुरु भार सहन करनेमें अक्षम उसका
गात हुवा ||
यह नहीं सहन कर यह देख 'वीर' वे औ' बोले-'भागो शीघ्र उधर,
पाता अब, उतर पड़े ।
मन भी तुम्हारा जिधर पड़े || "
- रूप
यह सुनते ही निज देव -- में परिवर्तित वह उरग हुवा | कुछ समय पूर्व का काल नाग, सुर रूप सुदर्शन सुभग हुवा ||
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