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पर सुरपुर से भी तो 'नगोद' में ले इनका दुर्भाग्य गया ।
एकेन्द्रिय काय
ले या फिर
वनस्पति में,
सौभाग्य नया ॥
पश्चात् 'राजगिरि' नगरी में, 'शाण्डलि' के विप्रकुमार हुये ! 'माहेन्द्र' नाम के सुरपुर में, जाकर फिर देवकुमार हुये ॥
कर आयु पूर्ण फिर 'विश्वभूति' राजा के राजकुमार हुये । तप के प्रभाव
से फिर दसवें -
सुरपुर के ये
श्रृङ्गार हुये ||
परम ज्योति महावीर
जनमे
'पोदनपुर' - राजा
के,
नारायण पद अभिराम मिला ।
पर विषयलीनता से
फिर से,
सातवें नरक का धाम मिला ||
गङ्गा तट के 'वनि सिंह' अचलमें इनको सिंह- शरीर मिला ।
हिंसा फल से फिर प्रथम नरक
की बैतरिणी का नीर
मिला ||
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