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rai सर्ग
श्र पुनः वहाँ से 'कपिल' नामके ब्राह्मण को सन्तान हुये । वय पाने पर परिवाजक हो, सुरपुर में देव महान हुये ||
तदनन्तर
में पुत्र
रूप में
हो सांख्य यती वे 'सौधर्म' स्वर्ग में
पश्चात् यहाँ श्रा पुत्र रूपमें 'अग्निभूति' के गृह जनमें । हो साधु पुनः उत्पन्न हुये, वे स्वर्गलोक के आँगन में ॥
'भारद्वाज' भवन
ले जन्म 'साङ्कलायन' के गृह अति पावन उसका धाम किया । कर ग्रहण त्रिदण्डी दीक्षा फिर ब्रह्माख्य स्वर्ग श्रभिराम किया ||
आये थे ।
जन्म पुनः पाये थे ॥ -
फिर इनने 'गौतम' ब्राह्मण के -- गृह में आकर अतवार लिया । कर सांख्य प्रचार यहाँ भी तो, फिर सुरपुर का शृङ्गार किया ||
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