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परम ज्योति महावीर
देखा, कैसे उस सौरि सदनसे बाहर बे जिनराज गये । देखा, कैसे 'ऐरावत' पर, बैठा कर ले सुरराज गये ॥
अभिषेक-अनतर कैसे सब, शृंगार किया इन्द्राणी ने ? कैसे आये वे 'कुण्ड ग्राम !
यह सब देखा हर प्राणी ने ॥ सुरपति ने प्रभु के पूर्व जन्मदिखलाना फिर प्रारम्भ किया । वे किस किस गति में हो पाये ? बतलाना यह प्रारम्भ किया ।
दिखलाया, पिछले भव में ये, 'पुरुखा' भील कहलाये थे। मुनि के सम्मुख तज मांस जन्म'सौधर्म' स्वर्ग में पाये थे ।
पश्चात् 'भरत' के सुत हो ये, उस समय 'मरीचि' कहाये थे । कर सांख्य-प्रचार वहाँ, पञ्चमब्रह्माख्य स्वर्ग में आये थे।