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आठवाँ सर्ग
हो चित्र लिखित से देख रहे -
थे सारे दर्शक मौन
वहाँ ।
यह नहीं किसी को चिन्ता थी,
हैं मेरे परिजन कौन कहाँ ?
प्यारी
प्यारे
प्यारे को भूली
का भूली प्यारी
बेटा
बेटा भूली
भूला महतारी
पलकें न एक भी बार गिरें, सब का था मात्र प्रयास यही । कारण ऐसा सौभाग्य पुनः मिलने का था विश्वास नहीं ||
थी,
थी ।
को,
महतारी थी ॥
सब सुरपति कृत अभिषेकोत्सव -- के दृश्य समक्ष निरखते थे । अवलोक जिन्हें यों लगता था, मानों प्रत्यक्ष निरखते थे |
बस, यही सोचकर सब ही ने, सुस्थिर अपना हर योग किया । मन वचन काय में से न किसी-का भी अन्यत्र प्रयोग किया ||
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