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परम ज्योति महावीर
थीं बनी दर्शिका, दर्शनीय-- पर बन उनके ही भेष गये। था बँधा घाँघरा चोटी से, नीबी से बाँधे केश गये ।
यो सजकर गयीं युवतियाँ थीं, सजित हो युवक समाज गया । कारण, था उसका जन्म विफल, जो नहीं वहाँ था आज गया ।
भर गया अखिल राजाङ्गण था, जनता अब नहीं समाती थी। पर दृष्टि जहाँ तक जाती थी, आती ही भीड़ दिखाती थी।
कुछ ही क्षण में अति शीघ्र वहाँ, लग गया विलक्षण मेला था । मानो नर गति के चित्रों का
संकलन हुवा अलबेला था । निश्चित क्षण में सुरपति का वह, नाटक श्रारम्भ समोद हुवा । जिससे शिक्षा भी मिली, साथही सात्विक मनोविनोद हुवा ॥ .